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NCERT Class 12th Biology Chapter Tissue and Cells complete notes in Hindi with 5+ Description free download pdf जीव विज्ञान हिंदी नोट्स कक्षा 12 डाउनलोड पीडीएफ फ्री

NCERT Solutions for Class 12th Biology in Hindi, Medium Biology class 12th notes in Hindi
इस पोस्ट में हमने आप लोगों को सेल के बारे में संक्षेप में है और इमेज लगाकर भी समझाया गया है। ताकि आपको यह टॉपिक अच्छे से समझ आ सके।

Biology

कोशिका (Cell)

सभी जीवधारी कोशिकाओं से बने होते हैं। इनमें से कुछ जीव एक कोशिका से बने होते हैं जिन्हें एककोशिका जीव कहते हैं, जबकि दूसरे, हमारे जैसे जीव अनेक कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं। बहुकोशिका जीवन कहते है। राबर्ट हुक ने 1665 में सर्वप्रथम कोर्क कोशिकाओं को देखा एवं उनका चित्र दिया यह चित्र साधारण सूक्ष्मदर्शी की मदद से देखी गई कोशिकाओं पर आधारित था।



1838 में जर्मनी के वनस्पति वैज्ञानिक मैथीयस स्लाइडेन ने बहुत सारे पौधों के अध्ययन के बाद पाया कि ये पौधे विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं, जो पौधों में ऊतकों का निर्माण करते हैं।

लगभग इसी समय 1839 में एक ब्रिटिश प्राणि वैज्ञानिक थियोडोर श्वान ने विभिन्न जंतु कोशिकाओं का अध्ययन किया।

स्लाइडेन व श्वान ने संयुक्त रुप से कोशिका सिद्धांत को प्रतिपादित किया। यद्यपि इनका सिद्धांत यह बताने में असफल रहा कि नई कोशिकाओं का निर्माण कैसे होता है। पहली बार रडोल्फ बिचों (1855) ने स्पष्ट किया कि कोशिका विभाजित होती है और नई कोशिकाओं का निर्माण पूर्व स्थित कोशिकाओं के विभाजन से होता है (ओमनिस सेलुल-इ सेलुला)।

इन्होंने स्लाइडेन व श्वान की कल्पना को रुपांतरित कर नई कोशिका सिद्धांत को प्रतिपादित किया। वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में कोशिका सिद्धांत निम्नवंत हैः

1 सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पाद से बने होते हैं।
2 सभी जीवों की बुनियादी इकाई है कोशिकाओं।


3 सभी कोशिकाएं पूर्व स्थित कोशिकाओं से निर्मित होती हैं।

प्रत्येक कोशिका के भीतर एक सघन झिल्लीयुक्त संरचना मिलती है, जिसको केंद्रक कहते हैं।


केंद्रक (Nucleus)


कोशिकीय अंगक केंद्रक की खोज सर्वप्रथम रार्बट ब्राउन ने सन् 1831 में की थी।केंद्रक आवरण दो समानातंर झिल्लियों से बना होता है, जिनके बीच 10 से 50 नैनोमीटर का रिक्त स्थान पाया गया है जिसे परिकेंद्रकी अवकाश कहते हैं।


अंतरावस्था केंद्रक के ढीली-ढाली अस्पष्ट न्यूक्लियों प्रोटीन तंतुओं की जालिका मिलती है जिसे क्रोमोटीन कहते हैं। अवस्थाओं व विभाजन के समय केंद्रक के स्थान पर गुणसूत्र संरचना दिखाई पड़ती है। क्रोमोटीन में डीएनए तथा कुछ क्षारीय प्रोटीन मिलता है जिसे हिस्टोन कहते हैं, इसके अतिरिक्त उनमें इतर हिस्टोन व आरएनए भी मिलता है।

केद्रक में आनुवंशिक पदार्थ डीएनए होता है। जिस कोशिका में झिल्लीयुक्त केंद्रक (Nuclear Membrane) होता हैं, उसे येकैरियोट (Eukaryotic) व जिसमें झिल्लीयुक्त केंद्रक नही मिलता उसे प्रोकैरियाट (Prokaryotic) कहते है।

यूकैरियोटिक कोशिका में केद्रक के अतिरिक्त अन्य झिल्लीयुक्त विभिन्न संरचनाएं मिलती हैं, जो कोशिकांग (Organelles) कहलाती है जैसे- अंतप्रद्रवयी जालिका (Endoplasmic reticulum ) सूत्र कणिकाएं (Mitochondria) सूक्ष्य (Microbody) गाल्जीसामिश्र लयनकाय (Lysosome) व रसधानी प्रोकैरियोटिक 
कोशिका में झिल्लीयुक्त कोशिकांग का अभाव होता है।


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यूकैरियोटिक व प्रोकैरियोटिक दोनों कोशिकाओं में झिल्ली रहित अंगक राइबोसोम मिलते हैं।
कोशिका के भीतर राइबोसोम केवल कोशिका द्रव्य में ही नही; बल्कि दो अंगको-हरित लवक (Chloroplast) (पौधों में) व सूत्र कणिका (Mitochondria) में व खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका में भी मिलते हैं।

कोशिकाएं माप, आकार व कार्य की दृष्टि से काफी भिन्न होती है। उदाहरणार्थ-सबसे छोटी माइकोप्लाज्मा 0.3 µm (माइक्रोमीटर) लंबाई की, जबकि जीवाणु (बैक्टीरिया) में 3 से 5 µm (माइक्रोमीटर) की हैं।
प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं

प्रोकैरियोटिक कोशिकाएं, जीवाणु, नीलहरित शैवाल, माइकोप्लाज्मा और प्ल्यूरों निमोनिया सम
जीव (PPLO) मिलते हैं।

कोशिका में साइटोप्लाज्मा एक तरल मैट्रिक्स के रुप में भरा रहता है। इसमें कोई स्पष्ट विभेदित केंद्रक नहीं पाया जाता है।



आनुवंशक पदार्थ मुख्य रुप से नग्न व केंद्रक झिल्ली द्वारा परिबद्व नहीं होता है। जिनोमिक डीएनए के अतिरिक्त (एकल गुणसूत्र/गोलाकार डीएनए) जीवाणु में सूक्ष्म डीएनए वृत जिनोमिक डीएनए के बाहर पाए जाते हैं। इन डीएनए वृतो को प्लाज्मिड कहते हैं।

प्रोकैरियोटिक की यह विशेषता कि उनमें कोशिका झिल्ली एक विशिष्ट विभेदित आकार में मिलती है। जिसे मीसोसोम कहते है। ये तत्व कोशिका झिल्ली अंतर्वतन होते है।

कुछ प्रोकैरियोटिक जैसे नीलरहित जीवाणु के कोशिका द्रव्य में झिल्लीमय विस्तार होता है। जिसे वर्णकी लवक कहते हैं। इसमें वर्णक पाए जाते हैं।

जीवाणु कोशिकाएं चलायमान अथवा अचलायमान होती हैं। यदि वह चलायमान हैं तो उनमें कोशिका भिती जैसी पतली मिलती हैं। जिसे कशाभिका कहते हैं जीवाणु कशाभिका (फ्लैजिलम) तीन भागों में बँटा होता है-तंतु, अंकुश व आधारीय शरीर। तंतु, कशाभिका का सबसे बड़ा भाग होता है और यह कोशिका सतह से बाहर की ओर फैला होता है।

राइबोसोम


जार्ज पैलेड (1953) ने इलेक्ट्राॅन सूक्ष्मदर्शी द्वारा सघन कणिकामय संरचना राइबोसोम को सर्वप्रथम देखा था।

प्रोकैरियोटिक में राइबोसोम कोशिका की जीवद्रव्य झिल्ली से जुड़े होते है। ये 15 से 20 नैनोमीटर आकार की होती हैं और दो उप इकाइयों में 50S व 30S की बनी होती हैं, जो आपस में मिलकर 70 S प्रोकैरियोटिक राइबोसोम बनाते हैं। राइबोसोम के ऊपर प्रोटीन संश्लेषित होती है।


राइबोसोम अंतर्द्रव्यी जालिका के बाहरी सतह पर चिपके रहते हैं। जिस अंतर्द्रव्यी जालिका के सतह पर यह राइबोसोम मिलते हैं, उसे खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका कहते हैं। राइबोसोम की अनुपस्थिति पर अंतर्द्रव्यी जालिका चिकनी लगती है।

चिकनी अंतर्द्रव्यी जालिका प्राणियों में लिपिड़ संश्लेषण के मुख्य स्थल होते हैं। लिपिड की भाँति स्टीरायडल हार्मोन चिकने अंतर्द्रव्यी जालिका में होते हैं।

अंतर्विष्ट पिंड


प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में बचे हुए पदार्थ कोशिकाद्रव्य में अंतर्विष्ट पिंड के रुप में संचित होते हैं। झिल्ली द्वारा घिरे नहीं होते एवं कोशिकाद्रव्य में स्वतंत्र रुप से पड़े रहते हैं, उदाहरणार्थ-फॉस्फेट कणिकाएं, साइनोफाइसिन कणिकाएं और ग्लाइकोजन (Glycogen granules) कणिकाएं। गैस रसधानी नील रहित, बैंगनी और हरी प्रकाश-संश्लेषी जीवाणुओं में मिलती है।


कोशिका भिती


शैवाल की कोशिका भिती सेलुलोज, गैलेक्टेन्स, मैनान्स व खनिज जैसे कैल्सियम
कार्बोनेट की बनी होती है, जबकि दूसरे पौधों में यह सेलुलोज, हेमीसेलुलोज, पेक्टीन व प्रोटीन की बनी होती है।
मध्यपटलिका मुख्यतः कैल्सियम पेक्टेट की बनी सतह होती है।
कोशिकायें आपस में प्लामोडेस्मेटा से जुड़ी रहती है।
यूकैरियोटिक कोशिकाएं

यूकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्लीदार अंगकों की उपस्थिति के कारण कोशिकाद्रव्य विस्तृत कक्षयुक्त प्रतीत होता है।




प्राणी कोशिका


प्राणी कोशिकाओं में तारकाय (Centriole) मिलता है जो लगभग सभी पादप कोशिकाओं में अनुपस्थित होता है। प्राणी कोशिका में कोशिका भिती (Cell Wall) का अभाव होता है।



कोशिका झिल्ली (PLASMA MEMBRANE)

वर्ष 1950 में इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की खोज के बाद कोशिका झिल्ली की विस्तृत संरचना का ज्ञान संभव हो सका है।

कोशिकाओं लिपिड की बनी होती है, जो दो सतहों में व्यवस्थित होती है। लिपिड झिल्ली के अंदर व्यवस्थित होते हैं, जिनका धु्रवीय सिरा बाहर की ओर व जल भीरु पुच्छ सिरा अंदर की ओर होता है।

विभिन्न कोशिकाओं में प्रोटीन व लिपिड का अनुपात भिन्न-भिन्न होता है। मनुष्य की रुधिराणु (इरीथ्रोसाइट) की झिल्ली में लगभग 52 प्रतिशत प्रोटीन व 40 प्रतिशत लिपिड मिलता है। झिल्ली के पाए जाने वाले प्रोटीन को अलग करने की सुविधा के आधार पर दो अंगभूत व परिधीय प्रोटीन भागों में विभक्त कर सकते हैं। परिधीय प्रोटीन झिल्ली की सतह पर होता है, जबकि अंगभूत प्रोटीन आंशिक या पूर्णरुप से झिल्ली में धंसे होते है।
अंतः झिल्लिा तंत्र

इस तंत्र के अंतर्गत अंतर्द्रव्यी जालिका, गॉल्जीकाय, लयनकाय, व रसधानी अंग जाते हैं। सूत्रकणिका (माइटोकॉन्ड्रिया), हरितलवक व परआॅक्सीसोम के कार्य उपरोक्त अंगों से सबंधित नही होते, इसलिए इन्हें अंतः झिल्लिका तत्र के अंतर्गत नहीं रखते हैं।




अंतर्द्रव्यी जालिका (ऐन्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम)


इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से अध्ययन के पश्चात् यह पता चला कि यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में चपटे, आपस में जुड़े, थैली युक्त छोटी नलिकावत जालिका तंत्र बिखरा रहता है जिसे अंतर्द्रव्यी जालिका कहते है इस तंत्र के अन्तर्गत अंतर्द्रव्यी जालिका, गल्जीकाय, लयनकाय व रसधानी अंग आते है।


गॉल्जी उपकरण


केमिलो गॉज्ली (1898) ने पहली बार केंद्रक के पास घनी रंजित जालिकावत संरचना तंत्रिका कोशिका में देखी। इनका व्यास 0.5 माइक्रोमीटर से 1.0 माइक्रोमीटर होता है।



लयनकाय (लाइसासोम)


यह झिल्ली पुटिका संरचना होती है जो संवेष्टन विधि द्वारा गाॉल्जीकाय में बनते हैं। पृथकीकृत लयनकाय पुटिकाओं में सभी प्रकार की जल-अपघटकीय एंजाइम (जैसे-हाइड्रोलेजेज लाइपेसेज, प्रोटोएसेज व कार्बोडाइड्रेजेज) मिलते हैं जो अम्लीय परिस्थितियों में सर्वाधिक सक्रिय होते हैं। ये एंजाइम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड न्यूक्लिक अम्ल आदि के पाचन में सक्षम हैं।


रसधानी (वैक्यौल)


कोशिकाद्रव्य में झिल्ली द्वारा घिरी जगह को रसधानी कहते हैं। इनमें पानी, रस, उत्सर्जित पदार्थ व अन्य उत्पाद जो कोशिका के लिए उपयोगी नहीं हैं, भी इसमें मिलते हैं। रसधानी एकल झिल्ली से आवृत होती है जिसे टोनाप्लास्ट कहते हैं।



सूत्रकणिका (माइटोकोंड्रिया)


यह तशतरीनुमा बेलनाकार आकृति की होती है जो 1.0-4.1 माइक्रोमीटर लंबी व 0.2-1 माइक्रोमीटर (औसत 0.5 माइक्रोमीटर) व्यास की होती है। भीतरी कक्ष को आधात्री (मैट्रिक्स) कहते हैं। बाह्मकला सूत्रकणिका की बाह्म सतत सीमा बनाती है। इसकी अंतझिल्ली कई आधात्री की तरफ अंतरवलन बनाती है जिसे क्रिस्टी (एक वचन-क्रिस्टो) कहते हैं। सूत्रकणिका के आधात्री में एकल वृताकार डीएनए अणु व कुछ आरएनए राइबोसोम्स (70ैद्ध तथा प्रोटीन संश्लेषण के लिए आवश्यक घटक मिलते हैं।


लवक (प्लास्टिड)


लवक सभी पादप कोशिकाओं एवं कुछ प्रोटोजोआ जैसे यूग्लिना में मिलते हैं। ये आकार में बड़े होने के कारण सूक्ष्मदर्शी से आसानी से दिखाई पड़ते है। इसमें विशिष्ट प्रकार के वर्णक मिलने के कारण पौधे भिन्न-भिन्न रंग के दिखाई पड़ते हैं। विभिन्न प्रकार के वर्णकों के आधार पर लवक कई तरह के होते हैं जैसे-हरित लवक, वर्णीलवक व अवर्णीलवक।



हरित लवक


हरित लवकों में पर्णहरित वर्णक व केरोटिनॉइड वर्णक मिलते हैं जो प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रकाशीय ऊर्जा को संचित रखने का कार्य करते हैं। वर्णीलवकों में वसा विलेय केरोटिनॉइड वर्णक जैसे-केरोटीन, जैंथोफिल व अन्य दूसरे मिलते हैं। मंडलवक में मंड के रुप में कार्बोहाइड्रेट संचित होता हैं; जैसे-आलूः तेल वलक में तेल व वसा तथा प्रोटीन लवक में प्रोटीन का भंडारण होता हैं। हरित लवकों की लंबाई (5-10 माइक्रोमीटर) व चैड़ाई (2-4 माइक्रोमीटर) के होते हैं।


साइटोपंजर (साइटोस्केलेटन)


प्रोटीनयुक्त विस्तृत जालिकावत तंतु जो कोशिकायुक्त में मिलता है उसे साइटोपंजर कहते हैं।
पक्ष्माभ व कशाभिका (सीलिया तथा फ्लैजिला) पक्ष्माभिकाएं (एकवचन-पक्ष्माभ) व कशाभिकाएं (एक वचन-कशाभिका) रोम सदृश कोशिका झिल्ली पर मिलने वाली अपवृद्वि है।


इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से पता चलता है कि पक्ष्माभ व कशाभिका जीवद्रव्यझिल्ली से ढके होते हैं। इनके कोर को अक्षसूत्र कहते हैं। जो कई सूक्ष्म नलिकाओं का बना होता है जो लंबे अक्ष के समानांतर स्थित होते हैं। अक्षसूत्र के केंद्र में एक बड़ा सूक्ष्म नलिका मिलती है अक्षसूत्र की सूक्ष्मनलिकाओं की इस व्यवस्था को 9+2 प्रणाली कहते हैं।

तारककाय व तारकक्रेद्र (सन्ट्रोसोम तथा सैन्ट्रीऔल)


तारककाय वह अंगक है जो दो बेलनाकार संरचना से मिलकर बना होता है, जिसे तारकक्रेद्र कहते है। तारककेद्र का अग्र भीतरी भाग प्रोटीन का बना होता है जिसे धुरी कहते हैं, यह परिधीय त्रिक के नलिका से प्रोटीन से बने अरीय दंड से जुड़े होते हैं। तारककेद्र पक्ष्माभ व कशाभिका व आधारीकाय बनाता है और तर्कुतंतु जंतु कोशिका विभाजन के उपरांत तर्कु उपकरण बनाता है।


तारककाय व तारकक्रेद्र (सन्ट्रोसोम तथा सैन्ट्रीऔल)


तारककाय वह अंगक है जो दो बेलनाकार संरचना से मिलकर बना होता है, जिसे तारकक्रेद्र कहते है। तारककेद्र का अग्र भीतरी भाग प्रोटीन का बना होता है जिसे धुरी कहते हैं, यह परिधीय त्रिक के नलिका से प्रोटीन से बने अरीय दंड से जुड़े होते हैं। तारककेद्र पक्ष्माभ व कशाभिका व आधारीकाय बनाता है और तर्कुतंतु जंतु कोशिका विभाजन के उपरांत तर्कु उपकरण बनाता है।



कोशिका चक्र


कोशिका विभाजन सभी जीवों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। एक कोशिका विभाजन के दौरान डीएनए प्रतिकृति व कोशिका वृद्धि होती है। कोशिका चक्र की दो मूल प्रावस्थाएं होती है



अंतरावस्था


श्च सूत्री अंतरकला प्रावस्था (जी1 फेस) सम सूत्री विभाजन एवं डीएनए प्रतिकृतिकरण के बीच अंतराज को प्रदर्शित करता है। एस फेस या संश्लेषण प्रावस्था के दौरान डीएनए का निर्माण एवं इसकी प्रतिकृति होती है। इस दौरान डीएनए की मात्रा दुगुनी हो जाती है।


अंतरावस्था 3 चरणों में विभाजित हैः


G1 1st Gap (Growth) पश्च सूत्री अंतराल प्रावस्था
Cell doing its “everyday job” कोषिकाऐं नियमित कार्य करती है।
Cell grows कोषिकाऐं
S = डी.एन.ए. संष्लेषण (संष्लेषण अवस्था)

गुण सूत्रों G2 प्रतियाँ पूर्व सूत्री विभाजन (अंतरकाल प्रावस्था)

अंतरावस्था (सूत्री विभाजन)


M प्रावस्था का आरंभ केद्रक के विभाजन (कैरिया काइनेसिस) से होता है, जो कि संगत संतति गणसूत्र के पृथक्करण (सूत्री विभाजन) के समतुल्य होता है और इसका अंत कोशिकाद्रव्य विभाजन (साइटोकाइनेसिस) के साथ होता है।
यदि डीएनए की प्रारंभिक मात्रा को 2 C से चिह्नित किया जाए तो यह बढ़कर 4 C हो जाती है यद्यपि गणसूत्र की संख्या में कोई वृद्धि नहीं होती। कोशिका वृद्धि के साथ सूत्री विभाजन हेतु G2 प्रावस्था के दौरान प्रोटीन का निर्माण होता है।

ये कोशिकाएं जो आगे विभाजित नही होती है। G1 प्रावस्था से निकलकर निष्क्रिय अवस्था में पहुंचती हैं, जिसे कोशिका चक्र की शांत अवस्था G0 कहते हैं।
सूत्री विभाजन अवस्था ( M प्रावस्था )

सूत्री विभाजन को चार अवसथाओं में विभाजित किया गया हैः-
1 पूर्वावस्था (Prophase)
2 मध्यावस्था (Metaphae)
3 पश्चावस्था (Anaphase)
4 अंत्यावस्था (Telophae)
पूर्वावस्था

अंतरावस्था की S व G2 अवस्था के बाद पूर्वावस्था सूत्री विभाजन की पहला पड़ाव है। S व G2 अवस्था में डीएनए के नए सूत्र बन तो जाते हैं, लेकिन लेकिन आपस में गुँथे होने के कारण स्पष्ट नहीं होते। गुणसूत्रीय पदार्थ के संघनन का प्रारंभ ही पूर्वावस्था की पहचान है। तारकेंद्र जिसका अंतरावस्था की S प्रावस्था के दौरान ही द्विगुणन हुआ था, अब कोशिका के विपरीत धुव्रों की ओर चलना प्रारंभ कर देता है।

पूर्वावस्था के पूर्ण होने के दौरान महत्वपूर्ण घटनाएं

गुणसूत्रीय द्रव्य संघनित होकर ठोस गुणसूत्र बन जाता है |

समसूत्री तर्कु, सूक्ष्म नलिकाओं के जमावड़े की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है।

मध्यावस्था

केंद्रक आवरण के पूर्णरुप से विघटित होने के साथ समसूत्री विभाजन की द्वितीय अवस्था प्रारंभ होती है।
मध्यावस्था गुणसूत्र दो संतति अर्धगुणसूत्रों से बना होता है जो आपस में गुणसूत्रबिंदु से जुड़े होते हैं। गुणसूत्रबिंदु के सतह पर एक छोटा बिंब आकार की संरचना मिलती है जिसे काइनेटोकोर कहते हैं।


सूक्ष्म नलिकाओं से बने हुए तर्कुतंतु के जुड़ने का स्थान ये संरचनाएं (काइनेटीकोर) हैं, जो दूसरी ओर कोशिका के केंद में स्थित गुणसूत्र से जुड़े होते हैं। मध्यावस्था में जिस तल पर गुणसूत्र पंक्तिबद्ध हो जाते हैं, उसे मध्वावस्थाा पट्टिका कहते है।

पश्चावस्था


पश्चावस्था के प्रारंम्भ में मध्यावस्था पट्टिका पर आए प्रत्येक गुणसूत्र एक साथ अलग होने लगते हैं, इन्हें अर्धगुणसूत्र कहते हैं जो कोशिका विभाजन के बाद बनने वाले नए संतति केंद्रक का गुणसूत्र बनेंगे, वे विपरीत धु्रवों की ओर जाने लगते हैं। सैट्रोमीटर भी विभाजित होकर प्रतिलोम ध्रुव की तरफ जाते है।




अंत्यावस्था


इस अवस्था में केंद्रकसूत्रों के दोनों समूहों और केंद्रों के चारों ओर केंद्रावरण उतपन्न होते हैं। इस प्रकार एक केंद्रक से दो केंद्रक उत्पन्न होते हैं। जिस समतल पर मध्यावस्था फलक स्थापित था उस स्थान पर एक आवरण बन जाता है, जिसके कारण वह कोशिका दो कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है। केंद्रक का विभाजन इसी विधि से होता है।


कोशिका द्रव्य विभाजन


कोशिका विभाजन संपन्न होने के अंत में कोशिका स्वंय एक अलग प्रक्रिया द्वारा जो संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है, इस प्रक्रिया जो कोशिकाद्रव्य विभाजन कहते हैं।
नई कोशिकाभिती निर्माण एक साधारण पूर्वगामी रचना से प्रारंभ होता है जिसे कोशिका पट्टिका कहते हैं, जो दो सन्निकट कोशिकाओं की भितीयों के बीच मध्य पट्टिका को दर्शाती है।



सूत्री कोशिका विभाजन का महत्व


सूत्री विभाजन या मध्यवर्तीय विभाजन द्विगुणित कोशिकाओं में होता है। कोशिका वृद्धि के परिणामस्वरुप केंद्रक व कोशिकाद्रव्य के बीच का अनुपात अव्यवस्थित हो जाता है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि कोशिका विभाजित होकर केंद्रक कोशिकाद्रव्य अनुपात को बनाए रखे।


अर्धसूत्री विभाजन


लैंगिक प्रजनन द्वारा संतति के निर्माण में दो युग्मकों का संयोजन होता है, जिनमें अगुणित गुणसूत्रों का एक समूह होता है। युग्मक का निर्माण विशिष्ट द्विगुणित कोशिकाओं से होता है। यह विशिष्ट प्रकार का कोशिका विभाजन है, जिसके द्वारा बनने वाली अगुणित संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या आधी हो जाती है। इस प्रकार के विभाजन को अर्धसूत्री विभाजन कहते है।


अर्धसूत्री विभाजन की मुख्य विशेषताएं निम्नवत हैः- 


अर्धसूत्री विभाजन के दौरान केंद्रक व कोशिका विभाजन के दो अनुक्रमिक चक्र संपन्न होते हैं, जिसे अर्धसूत्र प्रथम I व अर्धसूत्री II कहते हैं। इस विभाजन में डीएनए प्रतिकृति का सिर्फ एक चक्र पूर्ण होता है।

S अवस्था में पैतृक गुणसूत्रों के प्रतिकृति के साथ समान संतति अर्धगुणसूत्र बनने के बाद अर्धसूत्री I अवस्था प्रारंभ होती है।

अर्धसूत्री II विभाजन में समजात गुणसूत्रों का युगलन व पुनर्योजन होता है।

अर्धसूत्री II के अंत में चार अगुणित कोशिकाएं बनती हैं। अर्धसूत्री विभाजन को निम्न अवस्थाओं में वर्गीकृत किया गया हैंः-

अर्धसूत्री I अर्धसूत्री II
पूर्वावस्था I पूर्वावस्था II
मध्यावस्था I मध्यावस्था II
पश्चावस्था I पश्चावस्था II
अंत्यावस्था I अंत्यावस्था II

गुणसूत्रों के व्यवहार के आधार पर इसे पाँच प्रावस्थाओं में उपविभाजित किया गया है जैसे-तनुपट्ट (लैप्टोटीन), युग्मपट्ट (जाइगोटीन), स्थूलपट्ट (पैकेटीन), द्विपट्ट (डिप्लोटीन) व पारगतिक्रम (डायकाइनेसिस)।

साधारण सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखने पर तनुपट्ट (लिप्टोटीन) अवस्था के दौरान गुणसूत्र धीरे-धीरे स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं।



युग्मपट्ट (जाइगोटीन) :-


इस प्रकार के गुणसूत्रों के युग्मों की समजात गुणसूत्र कहते हैं। इस अवस्था का इलेक्ट्राॅन सूक्ष्मलेखी यह दर्शाता है कि गुणसूत्र सत्रयुग्मन के साथ एक जटिल संरचना का निर्माण होता है, जिसे सिनेप्टोनिमल सम्मिश्र कहते हैं। जिस सम्मिश्र का निर्माण

एक जोड़ी सूत्रयुग्मित समजात गुणसूत्रों द्वारा होता हैं, उसे युगली (bivalent) अथवा चतुष्क (tetrad) कहते हैं। स्थूलपट्ट (Pachytene) कम अवधि की होती हैं। इस अवस्था के दौरान युगली गुणसूत्र चतुष्क के रुप में अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं।

इस अवस्था में पुनर्योजन गं्रथिकाएं दिखाई देने लगते हैं जहाँ पर समजात गुणसूत्रों के असंतति अर्धगुणसूत्रों के बीच विनियमय (क्रासिंग ओवर) होता है। जो एंजाइम इस प्रक्रिया में भाग लेता है, उसे रिकाम्बीनेज कहते हैं। दो गुणसूत्रों में आनुवंशिक पदार्थो का पुनर्योजन जीन विनिमय द्वारा अग्रसर होता है।


“द्विपट्ट (डिप्लोटीन)” के प्रारंभ में सिनेप्टोनीमल सम्मिश्र का विघटन हो जाता है और युगली के समजात गुणसूत्र विनिमय बिंदु के अतिरिक्त एक दूसरे से अलग होने लगते हैं। विनिमय बिंदु पर ग् आकार की संरचना को काएज्मेटा कहते हैं। प्राणियों के अडंको के द्विपट्ट महीनों या वर्षो समाप्त होती हैं।

अर्धसूत्री पूर्वावस्था प् की अंतिम अवस्था पारगतिक्रम (डायाकाइनेसिस) कहलाती है। जिसमें काएज्मेटा का उपांतीभवन हो जाता है, जिसमें काएज्मेटा का अंत होने लगता है।

मध्यावस्था I :- युगली गुणसूत्र मध्यरेखा पट्टिका पर व्यवस्थित हो जाते हैं।

पश्चावस्था I :- समजात गुणसूत्र पृथक् हो जाते हैं, जबकि संतति अर्धगुणसूत्र गुणसूत्रबिंदु से जुड़े रहते हैं।

अंत्यावस्था I :- इस अवस्था में केंद्रक आवरण व केंद्रिक पुनः स्पष्ट होने लगते हैं, कोशिकाद्रव्च्य विभाजन शुरु हो जाता है और कोशिका की इस अवस्था की इस अवस्था को कोशिका द्विक कहते हैं।

पूर्वावस्था II:- अर्धसूत्री विभाजन प्प् गुणसूत्र के पूर्ण लंबा होने से पहले व कोशिकाद्रव्य विभाजन के तत्काल बाद प्रारंभ होता है। अर्धसूत्री विभाजन प् के विपरीत अर्धसूत्री विभाजन प्प् सामान्य सूत्री विभाजन के समान होता है। पूर्वावस्था प्प् के अंत तक केंद्रक आवरण अदृव्य हो जाता है।

मध्यावस्था II :- इस अवस्था में गुणसूत्र मध्यांश पर पंक्तिबद्ध हो जाते है।

पश्चावस्था II :- इस अवस्था में गुणसूत्रबिंदु अलग हो जाते हैं और इनसे जुड़े संतति अर्धगुणसूत्र कोशिका के विपरीत धु्रवों की ओर चले जाते हैं।

अंत्यावस्था II :- यह अवस्था अर्धसूत्री विभाजन की अंतिम अवस्था है, जिसमें गुणसूत्रों के दो समूह पुनः केंद्रक आवरण द्वारा घिर जाते है। कोशिकाद्रव्य विभाजन के उपरांत चार अगुणित संतति कोशिकाओं का कोशिका चतुष्टय बन जाता है। अर्धसूत्री विभाजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकें द्वारा लैंगिक जनन करने वाले जीवों की प्रत्येक जाति में विशिष्ट गुणसूत्रों की संख्या पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित रहती है।



ऊतक (Tissue)


कोशिकाओं का वह समूह, जिनकी उत्पत्ति, संरचना एवं कार्य समान हों, ‘ऊतक’ (Tissue) कहलाता है। ऊतकों का अध्ययन हिस्टोलाॅजी या औतकीय में किया जाता है। ये जन्तु एवं वनस्पति में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं।


जन्तु-ऊतक:- (ANIMAL TISSUE)


ये 5 प्रकार के होते हैं :-
1. इपीथीलियल ऊतक (Ephithilial Tissue): यह मुख्यतया अंगों के वाह्य एवं आन्तरिक सतह पर पाये जाते हैं। ये कुछ ‘स्रावित ग्रन्थियाँ’ (Secratory Glands) जैसे- दुग्ध ग्रन्थियाँ (Mammalary Glands) स्वेद् ग्रन्थियाँ (Sweat Glands –पसीने की ग्रन्थियाँ ) आदि में भी पाये जाते हैं।
2. पेशीय ऊतक (Muscular Tissue): ये मुख्यतया मांसल भागों एवं खोखले अंगों की दीवारों का निर्माण कहते हैं। ये अंगों के आन्तरिक भाग में पाये जाते हैं। जैसे- हृदय (Heart) ऊतक, यकृत (Liver) ऊतक, वृक्क (Kidney) ऊतक आदि। 
3. संयोजी ऊतक (Connective Tissue): ये 2 या 2 से अधिक ऊतकों को जोड़ने का कार्य करते हैं। जैसे- रक्त ऊतक, लिगामेन्ट (Ligament), कार्टिलेज (Cartilage), आदि।
4. तन्त्रिका ऊतक (Nervous Tissue): तन्त्रिका ऊतक की इकाई न्यूरान (Neuron) कहलाती है। तन्त्रिका ऊतक का मुख्य कार्य संवेदनाओं (Sensations) को ग्रहण कर मस्तिष्क तक पहुँचाना तथा मस्तिष्क द्वारा दिये गये आदेश को अभीष्ट अंग तक पहुँचाना होता है जो कि ‘न्यूरान्स’ (Neurons) के माध्यम से करता है। संवेदनाओं का चालन केमिको मैग्नेटिक वेव’ के रूप में होता है। इस केमिकल (रासायनिक पदार्थ) का नाम एसिटिलकोलीन (Acetylcholin) है। 
5. जनन ऊतक (Reproductive Tissue) : ये जनन कोशिकाओं में पाये जाते हैं जो नर में ‘स्पर्म’ (Sperm) एवं मादा में ‘ओवा’ (Ova) का निर्माण करते हैं। 


जंतुओं के शरीर में पाए जाने वाले ऊतकों को निम्न श्रेणियों में बाँटा गया है- उपकला ऊतक, संयोजी ऊतक, पेशी ऊतक एवं तंत्रिका ऊतक।


जंतुओं की बाहरी, भीतरी या स्वतंत्र सतहों पर उपकला ऊतक (Epithelial Tissue) पाये जाते हैं।
उपकला ऊतक में रुधिर कोशिकाओं का अभाव होता है तथा इनकी कोशिकाओं में पोषण विकसरण (Diffusion) विधि से लसीका द्वारा होता हैं
उपकला ऊतक त्वचा की बाह्य सतह, हृदय, फेफड़ा एवं वृक्क के चारों ओर तथा जनन ग्रंथियों की दीवार (wall) पर पाये जाते हैं।
उपकला ऊतक शरीर के आंतरिक भागों को सुरक्षा प्रदान करता है।
शरीर के सभी अंगों एवं अन्य ऊतकों को अपास में जोड़ने वाला ऊतक संयोजी ऊतक (Connective Tissue) कहलाता है।
संयोजी ऊतकों का प्रमुख कार्य शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करना तथा मृत कोशिकाओं को नष्ट कर ऊतकों को नवीन कोशिकाओं की आपूर्ति करना है।
रुधिर एवं लसीका जैसे तरल ऊतक (Fluid tissue) संवहन में सहायक है।
शरीर की सभी ‘पेशियों’ का निर्माण करने वाला ऊतक पेशी ऊतक (Muscle Tissue) कहलाता है।
पेशी ऊतक अरेखित (Unstriped), रेखित (Striped) तथा हृदयक जैसे तीन प्रकारों में बँटे हुए हैं-
अनैच्छिक रूप से गति करनेवाले अंगों आहार नाल, मलाशय, मूत्राशय, रक्त वाहिनियाँ आदि में अरेखित ऊतक पाये जाते हैं।
अरेखित पेशियाँ उन सभी अंगों की गतियों को नियंत्रित करती हैं जो स्वयं गति करती हैं।
रेखित पेशियाँ शरीर के उन भागों में पायी जाती हैं, जो इच्छानुसार गति करती हैं। प्रायः इन पेशियों के एक या दोनों सिरे रूपांतरित होकर टेण्डन के रूप में अस्थियों से जुड़े होते हैं।
हृदयक पेशी केवल हृदय की दीवारों में पायी जाती हैं। हृदय की गति इन्हीं पेशियों की वजह से होती है।
मानरव शरीर में कुल 639 मांस-पेशियाँ पायी जाती हैं। ग्लूटियस मैक्सीमस (कूल्हे की मांसपेशी) मानव शरीर की सबसे बड़ी तथा स्टैपिडियस सबसे छोटी मांसपेशी हैं
जंतुओं में तंत्रिका तंत्र का निर्माण तंत्रिका उत्तक द्वारा होता है।
तंत्रिका उत्तक न्यूराॅन्स एवं न्यूरोग्लिया जैसे दो विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं द्वारा निर्मित होते हैं।
तंत्रिका उत्तक शरीर में होने वाली सभी प्रकार की अनैच्छिक एवं ऐच्छिक क्रियाओं को नियंत्रित करती हैं।

वनस्पति ऊतक (Plant Tissue)


ये 2 प्रकार के होते हैं :-
  1. वर्धी ऊतक: यह सबसे तेज विभाजित होने वाला ऊतक होता है। ये पौधों के शीर्ष भाग (कार्य-ऊँचाई में वृद्धि), पाश्र्व भाग (कार्य- तने की मोटाई में वृद्धि) अन्तः सन्धि भाग (कार्य- शाखाओं का निर्माण) में पाये जाते हैं। ये ऊतक हरित लवक की उपस्थिति में भोजन-निर्माण का भी कार्य करते हैं। ये भोजन-संचय (पैरनकाइमा ऊतक में) का भी कार्य करते हैं।
  2. स्थाई ऊतक : जब वर्धी ऊतक की विभाजन क्षमता समाप्त हो जाती है, तो वे स्थाई ऊतक का निर्माण करते हैं। इसका मुख्य कार्य-भोजन निर्माण, भोजन-संचय और आन्तरिक सहायता (कोशिका को मजबूती प्रदान करना) है।

जटिल ऊतक (Complex Tissue) : एक से अधिक स्थाई ऊतक के मिलने पर ‘जटिल ऊतक’ का निर्माण होता है। 


ये 2 प्रकार के होते हैं :-
जाइलम:- ‘जाइलम’ का मुख्य कार्य- जमीन से जल एवं खनिज लवण (Minerals) का अवशोषण कर पौधे के सम्पूर्ण अंग तक पहुँचाना होता है।
फ्लोयम:- ‘फ्लोयम’ का कार्य- पत्तियों द्वारा बनाये गये भोजन को पौधे की जड़ तक पहुँचाना होता है। ‘जाइलम’ गुरूत्वाकर्षण बल के विरूद्ध तथा ‘फ्लोयम’ गुरूत्वाकर्षण बल की ओर कार्य करता है।

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