Hindi Notes

THE JUDGMENT -SEAT OF VIKRAMADITYA FULL STORY IN HINDI FREE PDF DOWNLOAD -BY SISTER NIVEDITA विक्रमादित्य का न्याय -सिंहासन

THE JUDGMENT SEAT OF VIKRAMADITYA

1. We are all .............. turn homewards.

हिन्दी अनुवाद : हम सब विक्रमादित्य के नाम से परिचित हैं। हमारे देश के इतिहास में उनके शासन का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। 'विक्रम सम्वत' का आरम्भ उनकी ही देंन  है. लेकिन उनका नाम इतना प्रसिद्ध है फिर भी हम उनके विषय में स्पष्ट रूप से शायद ही कुछ जानते हैं - यह बड़ी विचित्र बात है। फिर भी उनके विषय में यह निश्चित है कि वे न्याय और विद्या से प्रेम करते थें। उन्होंने अपनी प्रजा को पूर्ण न्याय दिया और अपने दरबार में विद्वानों को एकत्रित किया। यह खा जाता है कि वे इतिहास के महानतम न्यायधीश थें।


विक्रमादित्य को कभी धोखा नहीं दिया जा सका। उन्होंने कभी भी किसी निर्दोष व्यक्ति को दंड नहीं दिया। अपराधी कांपते थे जब वे उनके सामने आते थे क्यकि वे जानते थे कि उनकी आंखें उनके अपराध को एकदम स्पष्ट रूप से देख लेगी और जो व्यक्ति उनके सामने कठिन समस्याओं को लेकर आते हैं वे उनकी समस्याओं को हल करने के तरीके से सदैव संतुष्ट हो जाते थे अतः भारत में उनके बाद जब किसी न्यायाधीश बुद्धिमानी से न्याय किया तो उसके विषय में यही कहा गया कि वह अवश्य ही विक्रमादित्य के न्याय सिंहासन पर बैठा होगा।



 क्या कभी किसी ने विक्रमादित्य का न्याय सिहासन देखा है? शायद नहीं क्योंकि वह न्याय सिहासन कहीं नहीं है मैं तुम्हें यह बताने जा रहा हूं कि वह किस प्रकार अदृश्य हो गया विक्रमादित्य की मृत्यु के पश्चात। कालांतर में उज्जैन के लोग उन्हें भूल गए उनके महल और किले नष्ट हो गए धूल घास और वृक्षों से ढक जाने पर खंडहरों के ढेर पशुओं के चरने के लिए चारागाह बन गए ग्रामीण अपनी गाय को चराने के लिए इन चरागाहों में भेज देते थे प्रातः काल पशु चरवाहे बच्चों की देखरेख में जाया करते थे और शाम को देर से वापस लौट आते थे जब उनके वापस आने का समय होता था तो एक चरवाहा बच्चा चरागाह की एक कोने से आवाज देता था और सभी पशु अपने चरवाहों के साथ एकत्रित हो जाते थे और वह सब एक साथ अपने घरों को चल देते थे।
2. Such was ................. other cowherd.

हिन्दी अनुवाद :  उज्जैन के आसपास के गांव के चरवाहे बच्चों का जीवन इसी प्रकार का था। वे बड़ी संख्या में थे और चरागाहों के लंबे दिनों में आमोद प्रमोद के लिए उनके पास पर्याप्त समय था। एक दिन उन्हेंं खेलने का मैदान मिला? और वह कितना सुहावना था? वृक्षोंं के नीचे की भूमि। भर्ती और ऊंची। नीचे थी। जहां-तहां बड़े पत्थरों के नोोक मिलते हुए। दृष्टिगोचर होती थी और मध्य में एक हरा पीला था और जो एक न्यायाधीश के बैठने के स्थान की तरह प्रतीत होता था।

बच्चों में से एक ने ऐसा ही सोचा, और वह उस पर जा बैठा। उसने चिल्लाकर कहा, "मैं कहता हूं, बच्चों! में न्यायाधीश बनूंगा, और तुम अपने सब विवादों को मेरे समक्ष ला सकते हो और हम उनको सुनेंगे।" तब उसने अपना चेहरा गंभीर बनाया और न्यायाधीश का पार्ट  करने के लिए अति गंभीर हो गया।
दूसरे बच्चों ने इस मजाक को तुरंत ही समझ लिया, और आपस में कानाफूसी करते हुए झगड़ा किया और उसके सामने आ गए इस समूह ने अपना पक्ष प्रस्तुत किया ,इसने कहा कि अमुक खेत उसका है, दूसरों ने कहा कि उसका नहीं है, और इसी प्रकार मामला चलता रहा।  वह सब उस विवाद का निपटारा कराना चाहते थे।

किंतु अब, अचानक एक विचित्र बात स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगी।  टीले पर बैठने से पहले जो लड़का साधरण सा   बच्चा प्रतीत होता था, अब बहुत परिवर्तित दिखाई देने लगा। वह गंभीर हो गया था और उसका विश्वास इतना विचित्र और प्रभावशाली था कि शेष बच्चे कुछ भयभीत हो गए।  फिर भी उन्होंने सोचा कि यह खेल ही तो है, और एक बार पुनः उन्होंने उसके सामने एक नया विवाद प्रस्तुत किया और एक बार पुनः उसने अपना फैसला सुनाया। और इसी प्रकार घंटों तक यही क्रम चलता रहा -वह न्यायाधीश के स्थान पर बैठकर उसकी शिकायतों को सुनकर उसे गंभीरता से अपना फैसला उस समय तक सुनाता रहा जब तक उनके लौटने का समय न हो गया। और तब वह अपने स्थान से कूदा और अन्य बच्चों की तरह ही साधारण बच्चा बन गया।
3. From then onwards, ............. Vikramaditya.



हिन्दी अनुवाद : इस घटना के पश्चात वह चरवाहा इतना प्रसिद्ध हो गया कि सभी जतिन विवाद उसके समक्ष रखे जाने लगे। और सदैव वही बात होती थी ज्ञान और न्याय की आत्मा उसमें आ जाती थी और वह लोगों को सत्य के दर्शन करा देता था। किंतु जब वह अपने बैठने के स्थान से नीचे आ जाता था तो वह अन्य लोगों की तरह ही दिखाई देता था।

धीरे-धीरे यह समाचार देहाती क्षेत्र में फैल गया। समस्त गांव के बड़ी आयु के पुरुष और स्त्रियां इस चरवाहे लड़के के दरबार में अपने विवादों को लाते थे और सदैव ही उन्हें ऐसा निर्णय मिलता था जिसे दोनों पक्ष समझते थे।  अतः वे संतुष्ट होकर चले जाते थे।

अब राजा ने, जो उज्जैन से काफी दूर रहता था, यह कहानी सुनी। उसने कहा, "निश्चय ही वह वह लड़का विक्रमादित्य के न्याय-सिंहासन पर बैठा होगा।" राजा का अनुमान ठीक था क्योंकि चरवाहा का निकटवर्ती खंडहर कभी विक्रमादित्य का महल था। उसने विचार किया यदि टीले पर बैठे मात्र से ही चरवाहे लड़के  को बुद्धिमानी और न्याय की प्राप्ति हो जाती है तो हमें उसे खुदवाना चाहिए और न्याय सिहासन का पता लगाना चाहिए। मैं भी उस न्याय सिंहासन पर बैठूंगा और सब विवादों को सुनूंगा। तब विक्रमादित्य की आत्मा में शरीर में भी आ जाएगी और मैं भी सदैव एक न्याय प्रिय राजा कहलाएगा।"

अतः फावड़ों और कुदालों से घास का वह तिला जहाँ पर वे लडकें खेला करते थें, खोद दिया गया। वह लड़का दुखी था जो स्वयं ही न्यायाधीश बन गया था; उसने अनुभव किया कि उसकी कोई प्रिय वस्तु उससे छिनी जा रही है।
अंत में मजदूरों को कोई वस्तु मिली। उन्होंने उस पर से मिटटी हटाई और उन्हें 25 देवदूतों के हाथों और पंखो पर सघी हुई काले रंग की एक पटिया मिली। निश्चय ही यह विक्रमादित्य का न्याय-सिंहासन था।


4. With great rejoicing.............. judgment-seat.

हिन्दी अनुवाद : अत्यंत प्रसन्नता के साथ इसे नगर लाया गया और न्यायालय की विशाल कमरे में रख दिया गया। राजा ने अपनी प्रजा को आज्ञा दी कि वह 3 दिन तक ईश्वर की प्रार्थना करें और उपवास रखेऔर यह घोषणा की कि चौथे दिन जनता के सामने वह सिन्हासन पर बैठेगा।
अंत में प्रातः काल का वह शुभ समय आया और राजा को सिंहासन पर बैठता हुआ देखने के लिए लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई। लंबे हाँल से चलकर राज्य के न्यायाधीश और पुजारी आए, उनके पीछे-पीछे राजा था। तब, जैसे ही वे न्याय सिंहासन के निकट आए।  वे 2 पंक्तियों में बट-गए राजा उनके बीच में होकर आदरपूर्वक अपना सिर झुकाए सीधे संगमरमर की पाटिया की ओर बढ़ा। जब राजा उस सिंहासन पर बैठने ही वाला था, देवदूतों में से एक ने कहना आरंभ किया, "रुक जाओ !" उसने कहा, "क्या तुम समझते हो कि तुम विक्रमादित्य के न्याय सिंहासन पर बैठने के योग्य हो ? क्या तुमने कभी उन राशियों पर आज करने की इच्छा नहीं की थी जो तुम्हारे नहीं थी?" कुछ देर तक राजा को कोई उत्तर नहीं सूझा। वह जानता था कि उसका जीवन न्यायपूर्ण नहीं है। लंबी चुप्पी के बाद वह बोला, "नहीं, मैं योग्य नहीं हूं।" देवदूत ने कहा, "तब जाओ और 3 दिन तक उपवास और प्रार्थना करो ताकि तुम अपने आप को शुद्ध कर सको और इस सिंहासन पर बैठने के योग्य हो सको।" इतना कह कर उसने पंख फैलाए और उड़ गया।
विक्रमादित्य के न्याय-सिंहासन पर बैठने के लिए एक बार पुनः राजा ने ईश्वर की प्रार्थना की और उपवास करके स्वयं को तैयार किया। किंतु इस बार भी वही घटना पुनः घटी। पत्थर के दूसरे देवदूत ने उनसे पूछा कि क्या उसने कभी दूसरों के धन को लेने की इच्छा नहीं की। राजा ने स्वीकार किया कि उसने ऐसा किया है अतः वह न्याय-सिंहासन पर बैठने का अधिकारी नहीं है।

5. In this way, ........ for ever.

हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार जब कभी भी राजा ने उस सिंहासन पर बैठने का प्रयत्न किया, एक देवदूत ने उससे प्रश्न किया और उसे वापस लौटना पड़ा। यह क्रम उस समय तक चलता रहा जब तक उस संगमरमर की पटिया को साधने वाला केवल एक ही देवदूत रह गया। राजा सिंहासन के पास बहुत विश्वास के साथ गया क्योंकि उसे विश्वास था कि उसे उस दिन सिंहासन पर बैठने दिया जाएगा।
किंतु जैसे ही वह सिन्हासन के निकट आया, अंतिम देवदूत ने कहा, "ओ राजा, क्या तुम अब पूर्ण रूप से हृदय से शुद्ध हो ?क्या तुम्हारा ह्रदय एक छोटे बच्चे के समान पवित्र हैं ? यदि ऐसा है तो तुम वास्तव में इस सीट पर बैठने के योग्य हो।" राजा ने बहुत धीरे-से कहा, "नहीं, मैं योग्य नहीं हूं।" और इन शब्दों को सुनकर अंतिम देवदूत पटिया को अपने सिर पर रखकर आकाश में उड़ गया।
इस प्रकार विक्रमादित्य का न्याय-सिंहासन सदैव के लिए पृथ्वी से अदृश्य हो गया।

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